कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फ़ुर्सत में याद कर के, हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं पर 'हिच-किचा' रही है..!!



कौन शरमा रहा है आज यूँ हमें फ़ुर्सत में याद कर के,

हिचकियाँ आना तो चाह रही हैं पर 'हिच-किचा' रही है..!!





 अन्धेरा हूं तो अफसोस क्यूं करूं..?
मुझे गुरूर है, रोशनी का वजूद मुझसे है..!!

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